हालातों से युद्ध हो हुआ! Halaton se yudh hua!

हालातों  से युद्ध हो हुआ! Halaton se yudh hua!



BY : KD MISHRA
इस काव्य रचना में उन क्षणों का दर्द है जिसे इस संसार में कोई जब तक नही समझ सकता जब तक वो क्षण उस व्यक्ति की जिंदगी में ना आएं।
जब कम उम्र में सिर से पिता का साया हमेशा हमेशा के लिए चला जाए,घर का बड़ा होने के नाते घर की सारी जिम्मेदारियां नाजुक कंधों पर आ जाए तो वास्तव में हालातों से युद्ध होता है ,उन्हीं हालातों का सजीव रूप इस काव्य रचना में है:

उम्र में छोटा था मैं शायद,
यकायक ही बड़ा हुआ।
अबोध ,नासमझ था मैं ,
हालातों  से युद्ध हो हुआ।

मेरी आँखों के सामने,
सर का साया दूर हुआ।
जिम्मेदारियों की गठड़ी से,
उलझ गया ,संग्राम हुआ।

चेहरे के सभी भाव ,हंसी,
बदले सभी,गमगीन हुआ।
जो मुस्कुराता था सदा,
हद से ज्यादा चिड़चिड़ा हुआ।

छोटी आंखे,बड़े सपने ,लंबा रास्ता,
अवरोध इतना बड़ा हुआ ,जैसे
सर्वदा विजयी , रहने वाला अर्जुन,
युद्धभूमि में मूर्छित हुआ।

आंसू संग,इंद्रदेव  खूब बरसे,
सब कुछ जैसे ,बेरंग हुआ।
मन जो पहले मोम का था,
देखकर सब ,पत्थर हुआ।

केवल था ,अंधेरा ही अंधेरा,
सबकुछ तो चूर-चूर  हुआ।
दुःख के बादल फट गए,
जो श्री था, स्वर्गीय हुआ।

कुछ क्षण के लिए कंपित हुई धरा,
अद्भुत ,अलौकिक आभास हुआ
एक साया था आसपास मेरे
मुझे आपके होने का एहसास हुआ

मुझे लगा कोई मुझसे बोल रहा
आना जाना  तो जग रीत ही है।
जिसने जाना जितने जल्दी ,
उतने जल्दी वो बड़ा हुआ।

-जारी 
-कुल'दीप' मिश्रा

आदरणीय पापा जी आपकी तृतीय पुण्यतिथि पर आपको अश्रुपूरित नमन और भावभीनी श्रद्धांजलि,आप जहां भी हों अपना आशीष ,अपनी कृपा हम पर बनाये रखें।

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