अच्छा लगता है

एक खेल!


BY:KD MISHRA


नमस्कार मित्रों ,आप सभी के समक्ष आज पुनः कुछ काव्यपंक्तियों के  साथ उपस्थित हूँ। यह पंक्तियाँ मेरे वास्तविक अनुभवाधारित हैं, जो किसी विशेष व्यक्ति के बैडमिंटन खेलते समय के दृष्टांत का काव्यरूप है।


●अच्छा लगता है
जब 
एक खेल
हजार
जिम्मेदारियों 
वाले 
बेहद गंभीर 
चेहरे को 
हँसाता है।

●अच्छा लगता है,
जब स्वजन संग
कुछ समय 
खुशमय
बातचीत में
बीत जाता है।

●अच्छा लगता है,
जब ये 
कुछ समय 
के लिए 
तकनीकी 
दुनिया से 
बहुत दूर
ले जाता है।

●अच्छा लगता है
जब हमेशा
दूसरों को
झुकाने
वाला 
कुछ
समय के
लिये खुद
झुक जाता है।

●अच्छा लगता है
जब 
साधारण 
पानी से 
नहाने वाला 
तरबतर 
पसीने से 
नहाता है।


●अच्छा लगता है,
हर समय 
काम में
व्यस्त रहने 
वाला 
कुछ समय 
तो 
खुद को 
दे पाता है।

-जारी 
-कुल'दीप' मिश्रा (KD)

मुझे आशा ही नहीं वरन पूर्ण विश्वास है काव्यपंक्तियों ने आपके अन्तर्मन को जरूर छुआ होगा,आपके ये कैसी लगीं अपनी प्रतिक्रिया कमेंट के माध्यम से जरूर दें।
धन्यवाद !
जय हिंद


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3 comments:

  1. शानदार मिश्रा जी!

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  2. बहुत खूब मित्र।

    ReplyDelete

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